बक्सर जेल में कैदियों को मुख्यधारा में जोड़ने की अनोखी पहल

जेल का ख्याल दिमाग में आते ही अक्सर हमारे जेहन में ऐसी जगह का दृश्य कौंधता है, जहां कैदियों को भेड़-बकरी की तरह ठूंस-ठूंस कर रखा जाता हो अथवा कैदी के रसूख के हिसाब से उन्हें सुविधाएं दी जाती हों। लेकिन, जेलों की इन्हीं परिकल्पनाओं के बीच ऐतिहासिक-धार्मिक नगरी बक्सर में एक जेल ऐसी है, जहां कैदियों को कभी अहसास नहीं होता कि वे जेल में हैं।
जेल में न सिर्फ उन्हें अपने परिजनों के साथ रहने के लिए फ्लैट दिए जाते हैं, बल्कि यहां उन्हें सभी सुविधाएं मिलती हैं, जो एक आम आदमी जेल के बाहर पाता है। खास बात यह है कि यह जेल उसी सेंट्रल जेल का एक हिस्सा है जिसमें आपातकाल के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी काेई 15 दिन का समय बिता चुके हैं। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे तथा कालजयी लेखक राहुल सांकृत्यायन भी बक्सर केंद्रीय कारा में सजा भुगत चुके हैं यहीं से उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया था।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण पूरे बिहार के जेलों में बंद उन कैदियों का चुनाव मुक्त कारागार में रहने के लिए करता है, जो पेशेवर अपराधी ना हों। साथ ही, किसी संगीन जुर्म में सजा नहीं काट रहे हों। प्राधिकरण द्वारा गठित बोर्ड गहनता से सभी बिंदुओं पर जांच करने के बाद कैदियों का चुनाव करता है। सबसे आखिर में पुलिस अधीक्षक की अनुशंसा के बाद ये कैदी अपने परिवार के चार सदस्यों के साथ मुक्त कारागार में बने फ्लैट में रह सकते हैं।
बक्सर मुक्त कारागार में कैदियों के रहने के लिए 102 फ्लैट बनाए गए हैं। वर्तमान में केवल 80 कैदी ही मुक्त कारागार में अपने चार परिजनों के साथ रह रहे हैं. इस दौरान उन्हें अहसास ही नहीं होता कि वे जेल में हैं। बताया जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में बहुत सारे कैदी यहां से अपनी सजा पूरी कर जा चुके हैं लेकिन, वे जब तक मुक्त कारागार में रहे, खुशी-खुशी अपना समय व्यतीत किया।
मुक्त कारागार में बंद कैदियों को मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता काफी बेहतर है। बंदियों को यहां सप्ताह के सात दिनों में प्रतिदिन अलग-अलग मेन्यू के हिसाब से भोजन दिया जाता है. वृद्ध कैदियों के लिए जेल प्रशासन प्रतिदिन आधा लीटर दूध की भी व्यवस्था कराता है। हालांकि, कैदियों के साथ रह रहे परिजनों के भोजन की व्यवस्था कैदियों को स्वयं करनी होती है, जिसके लिए वे जेल से बाहर जाकर किसी प्रकार का काम कर सकते हैं। बताया जाता है कि बहुत सारे कैदी नगर के पांच किलोमीटर के दायरे में अपने रोजगार द्वारा परिजनों का भरण पोषण करते हैं।
जेल में बंद कैदियों को किसी भी प्रकार के रोजगार का चुनाव करने की आजादी है। कुछ दिनों पूर्व जेल में बंद एक कैदी होम्योपैथिक चिकित्सक अस्थाई क्लीनिक खोल कर रोगियों का इलाज किया करते थे। असाध्य रोगियों को भी उन्होंने अपने इलाज से भला-चंगा किया था। उनके यहां इलाज कराने वाले कैदी बक्सर से ही नहीं, बल्कि दूरदराज से भी आया करते थे। बाद में सजा पूरी होने के बाद उक्त कैदी ने नगर में क्लीनिक स्थापित कर रोगियों का इलाज शुरू कर दिया जो कि खूब चलता है। कुछ कैदी सब्जियों की खेती भी करते हैं। इसके लिए जेल के बड़े भू-भाग में वह सब्जियां उगाते हैं। सब्जियां उपजाने के एवज में उन्हें जेल प्रशासन को निर्धारित राशि का भुगतान करना होता है। सब्जियों की खेती से आय प्राप्त कर परिवार का भरण पोषण करते हैं।
बक्सर केंद्रीय कारा पुरानी जेलों में शुमार है जो स्वतंत्रता संग्राम से लेकर लोहिया के नेतृत्व में कांग्रेस हटाओ देश बचाओ आंदोलन और जेपी आंदोलन जैसे आंदोलनों का मूक गवाह है। वर्ष 2012 में 23 मई को सीएम ने बक्सर केंद्रीय कारा में मुक्त कारागार का उद्घाटन किया था। उस दौरान उन्होंने बताया था कि कैसे आपातकाल के खिलाफ जेपी आंदोलन में उन्होंने 15 दिन बक्सर केंद्रीय कारा में बिताए थे।
कारा अधीक्षक कुमारी शालिनी का कहना है कि यहां उन्हीं कैदियों को रखा जाता है जो अपनी आधी सजा काट चुके हैं। जिनका व्यवहार आम कैदियों से बेहतर और सद्भावनापूर्ण रहता है। साथ ही ऐसे कैदी जो जेल से निकलने के बाद समाज से जुडऩे की इच्छा रखते हों। उन्होंने कहा कि ओपन जेल की परिकल्पना का एकमात्र उद्देश्य कैदियों को समाज के मुख्यधारा में लौटाने का है।

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