किसानों की दिक्कतें ड्रोन करेगा दूर, खेती होगी दमदार

भारत में ड्रोन के उपयोग को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है और देश की कृषि व्यवस्था में ड्रोन तकनीक ना केवल फसल की गुणवत्ता को बढ़ाने में बल्कि ओलावृष्टि या बाढ़ की आपदा में नुकसान के आकलन एवं बीमा दावों के निपटारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
ड्रोन तकनीक दरअसल किसानों की सबसे बड़ी मित्र तकनीक साबित हो रही है। ड्रोन के साथ फसलों के गहन पड़ताल या एमआरआई तकनीक के प्रयोग से यूरिया एवं कीटनाशकों के सटीक उपयोग और फसल के सर्वाधिक पोषक होने के बारे में भी पता चल जाता है और इससे उत्पादकता एवं पोषणीयता भी बढ़ाने में मदद मिलती है।
भारतीय ड्रोन महासंघ के संस्थापक एवं देश की पहली ड्रोन पायलट प्रशिक्षण अकादमी ड्रोन डेस्टीशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चिराग शर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कृषि क्षेत्र में ड्रोन तकनीक का उपयोग क्रांतिकारी परिणाम लाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि किसानो एवं सरकार के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि ड्रोन के सर्वेक्षण संबंधी उपयोग से किसान फसल बीमा के प्रभावी क्रियान्वयन में मदद मिलने वाली है। ड्रोन में लगे शक्तिशाली कैमरे खेतों में बाढ़ या ओलावृष्टि आदि कारणों से फसलों के नुकसान का सटीक विवरण देने में सक्षम हैं जिससे दावा निपटारे में कम जद्दोजेहद करनी पड़ेगी और बिना किसी विवाद के सही राशि का भुगतान करना संभव होगा।
श्री शर्मा के अनुसार किसानों के लिए स्प्रे ड्रोन बहुत उपयोगी होते हैं। इससे नैनो यूरिया के छिड़काव एवं कीटनाशकों के प्रयोग को नियंत्रित किया जाता है। ड्रोन में एमआरआई तकनीक यानी एग्री हेल्थ स्कैन लगाने से समय समय पर किसान फसल की जानकारी लेता रहेगा और उसे पता चलता रहेगा कि फसल में किस समय पोषण सबसे अधिक होगा और उसे काटने का सही समय क्या है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों को एक नयी समस्या देखने में आयी है कि गन्ने में सुक्रोज की मात्रा पर्याप्त नहीं होने के कारण एक क्विंटल चीनी की उत्पादकता में पहले से अधिक गन्ने लग रहे हैं। यदि ड्रोन से एग्री हेल्थ स्कैन सर्वेक्षण कराया जा सके तो पता चल पाएगा कि किस समय गन्ने में सुक्रोज सर्वाधिक है। किसान उसी वक्त गन्ना काटने का समय तय कर ले तो इस समय गन्ने से शर्करा 40 से 45 प्रतिशत निकलती है, वह उत्पादकता 80 से 85 प्रतिशत तक हो सकती है।
उन्होंने बताया कि एग्री हेल्थ स्कैन से यह भी पता चल पायेगा कि कपास, सरसों, गेहूं आदि फसलों में किस हिस्से में कीट प्रकोप है। इससे कीटनाशक केवल उतने ही हिस्से में ही छिड़कने की जरूरत होगी। इससे यह भी पता चल सकेगा कि किस हिस्से में उर्वरक की मात्रा कम है और किस हिस्से में अधिक। इससे कम हिस्से वाले क्षेत्र में उर्वरक को डाला जाएगा। इसे स्पॉट इन स्प्रे तकनीक के नाम से जाना जाता है।
श्री शर्मा ने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की भागीदारी केवल तीन प्रतिशत के आसपास है। सिर्फ ड्रोन संबंधी तकनीकों के उपयोग से इस आंकड़े को तीन से पांच प्रतिशत तक किया जा सकता है और यदि कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण जीडीपी में की हिस्सेदारी पांच प्रतिशत हो जाए तो भारत को पांच ट्रिलियन यानी 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में बहुत कम समय लगेगा। यही नहीं यह किसानों की आमदनी को दोगुनी से कहीं अधिक करने में भी कारगर साबित होगा।
एक सवाल पर उन्होंने कहा कि खेती के लिए बनने वाले ड्रोन की कीमत वर्तमान में करीब पांच लाख रुपए है और भविष्य में जैसे जैसे मांग और उत्पादन बढ़ेगा, वैसे वैसे कीमत की कम होती जाएगी।
श्री शर्मा ने कहा कि इसके लिए बुनियादी जरूरत देश में ड्रोन विनिर्माण और ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण की होगी। उन्होंने कहा कि देश में ड्रोन पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए ड्रोन डेस्टीनेशन ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी रायबरेली के साथ मिलकर एक कोर्स तैयार किया है। करीब 40 घंटे की उड़ान के प्रशिक्षण के बाद प्रशिक्षुओं को प्रमाणपत्र के साथ ड्रोन उड़ाने की दक्षता हासिल हो जाती है। उन्होंने कहा कि देश में इस समय कुल 3500 प्रशिक्षित ड्रोन पायलट हैं जिनमें से 1500 से अधिक ड्रोन पायलट उनकी संस्था में प्रशिक्षित हुए हैं। उनकी संस्था इस समय छह केन्द्रों -मानेसर गुरुग्राम, डोड्डाबेलापुरम बेंगलुरु, धर्मशाला, ग्वालियर, कोयंबटूर एवं मदुरै में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जबकि भोपाल में जल्द ही सातवां केन्द्र खुलने जा रहा है।
श्री शर्मा ने बताया कि ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षुओं को शैक्षणिक योग्यता दसवीं पास है जबकि उनके पास पासपोर्ट एवं आधार कार्ड की ईकेवाईसी होनी चाहिए। ड्रोन पायलेट के प्रशिक्षण का शुल्क 50 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक है। यह इस पर निर्भर करती है कि किस काम के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
श्री शर्मा के अनुसार भारत में दो साल के भीतर करीब तीन लाख ड्रोन की मांग पैदा होने की संभावना है। चूंकि भारत में ड्रोन का आयात प्रतिबंधित कर दिया गया है। इससे देश में ड्रोन विनिर्माण में बड़ी तेजी दिखायी देने की उम्मीद है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से निकले इंजीनियर ड्रोन विनिर्माण में हाथ आज़मा रहे हैं। यही नहीं ड्रोन पायलट ट्रेनिंग दरअसल कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के असंख्य अवसर खोलेगी। आने वाले दिनों में ड्रोन पायलट बनना कस्बाई एवं ग्रामीण युवाओं के लिए प्रमुख आकर्षण होगा।

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