भारतीय शिक्षा में भारतीय ज्ञान की परंपरा
भोपाल राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप विधिक शिक्षा का कॅरिकुलम तैयार करने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय और विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा वर्कशॉप आयोजित की गई। इसमें 14 तकनीकी सत्र हुए। में देशभर से 56 सब्जेक्ट एक्सपर्ट, 258 डेलीगेस्ट और 70 संस्थान शामिल हुए। इसके समापन अवसर पर गुरुवार मध्यप्रदेश के उपलोकायुक्त जस्टिस एसके पॉलो, सुप्रीम कोर्ट के एडमिशन एडवोकेट जनरल मप्र एडवाेकेट जयदीप राय, कुलगुरु प्रो. एसके जैन, विद्या भारती के राष्ट्रीय उपाध्याक्ष व कार्यशाला के डॉ. शशिरंजन अकेला, विधि विभाग की एचओडी डॉ. मोना पुरोहित आदि मौजूद रहे। इस कार्यशाला के प्रतिभागतियों को प्रमाणपत्र दिए गए।
विद्या भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. शशिरंजन अकेला ने कहा कि भारत में शिक्षा को लेकर कंपार्टमेंटलाइजेशन की बात नहीं थी। ओपनैवेशिक काल में विषयों के आधार पर शिक्षा देने का भेद शुरू हुआ। इसे स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा में बांट गया। जबकि भारत की ज्ञान परंपरा में हम 64 कलाओं और 14 विद्याओं की शिक्षा के माध्यम से समग्र व्यक्ति विकास और जीवन के मूल्यों की शिक्षा देते थे। एनईपी में जिन बातों पर फोकस किया जा रहा है वो भारत की शिक्षा का स्वभाविक अंग थे। उन्होंने कहा कि हम तकनीकी से दूर नहीं होना चाहते। हम युगानुकूल परिर्वतन की बात करते हैं। हम एआई, आईओटी जैसी टेक्नोलॉजी के साथ काम कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि तकनीकी व्यक्ति पर हावी नहीं हो।
उन्होंने कहा कि अब भारतीय शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को शामिल करने की आवश्यकता है। इसलिए एनईपी में इस बात का ध्यान रखा गया कि शिक्षा ऐसी हो जो हमको संस्कृति से जोड़े रखे और जिसकी प्रतिबद्धता समाज की प्रगति में हो। अभी कानून के छात्र जो पढ़ रहे हैं उसमें अमेरिका और यूरोप को पढ़ रहे हैं। उन्होंने कुलगुरु के सामने प्रस्ताव रखा कि जस्टिस रामा जाेइस द्वारा भारत के न्यायशास्त्र पर लिखे ग्रंथों को विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों की लाइब्रेरी में रखवाइ जाना चाहिए। प्रतिशाली गरीब वर्ग के छात्र जो इन ग्रंथों को खरीद नहीं सकते उनको निशुल्क किताबें छात्रों तक पहुंचाई जाए। साथ ही कार्यशाला सिर्फ चर्चा तक सीमित नहीं रह जाए विधि विभाग को व्याख्यान आयोजित किए जाने चाहिए।
डॉ. अकेला ने कहा कि वर्तमान में लागू विधि के पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए, इस दौरान चर्चा हुई। छात्र-छात्राओं ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब पाठ़्यक्रम निर्माण में उनकी भूमिका को ध्यान रखा है। पहली बार पता चला कि छात्रों भी इसमें सहभागिता कर सकते हैं।
डॉ. अकेला ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने जिस मल्टीडिसिप्लिनरी एजुकेशन और एग्जिट-एंट्री और एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, हॉलिस्टिक एजुकेशन की बात कही है। उसे भी विधि शिक्षा में शामिल किया जाए। इन सभी विषयों पर 14 तकनीकी सत्रों पर बात हुई।
उन्होंने कहा कि हम देश के सब्जेक्ट एक्सपर्ट को एक प्लेटफार्म पर लाकर चर्चा करते हैं कि भारत के विचार, भारत का दर्शन,भारत के गौरव की शिक्षा में आना चाहिए। जिससे कैंपस से जब विद्यार्थी निकलेगा तो उसे गर्व होना चाहिए। इसलिए हमने कोशिश की विधि शिक्षा के देशभर के विद्वानों को एक प्लेटफार्म पर लेकर आए।
एडवोकेट जयदीप राय ने कहा कि इंटरनेशनल लेवल में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में उसमें एक समय तक अमेरिका और यूरोप के छात्र-छात्राएं टॉप करते थे। पिछले कुछ दिनों इसमें बदलाव हुआ और फिनलैंड के छात्रों ने यह जगह ले ली है। इसका कारण वे बताते हैं हम प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए छात्रों को शिक्षा नहीं देते हैं, हम जीवन में टिके रहने के लिए शिक्षा देते हैं।
जस्टिस पालो ने कहा कि बदलते सामाजिक बदलाव में विधि शिक्षा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वैकल्पिक विवाद समाधान विषय को विधि के छात्रों को बहुत अच्छ से पढ़ाया जाना चाहिए। अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि वे इस विषय के एक्सपर्ट बनकर अपने लोगों को त्वरित न्याय दे सकते हैं। इसके आमजन को लाभ होता है। उन्होंने आर्बीट्रेशन, लोक अदालत, कॉन्सिलिएशन, मीडिएशन पर प्रकाश डाला और कहा कि इससे न्यायालयों पर पड़ने वाला बोझ कम होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विधि शिक्षा का कॅरिकुलम भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर होना चाहिए।
कुलगुरु प्रो. जैन ने कहा कि साथ ही प्रो. जैन ने विद्या भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अकेला के प्रस्ताव पर सहमति और कहा कि जल्द ही विवि और विधि विभाग की लाइब्रेरी सहित सभी संबद्ध कॉलेजों की लाइब्रेरी में जस्टिस रामा जोइस की किताब उपलब्ध कराई जाएगी। अच्छी संख्या में उपलब्ध कराएंगे ताकि छात्रों आसानी से उपलब्ध हों और वो उनको पढ़ सकें। उन्होंने कहा कि एनईपी-2020 का मूल उद्देश्य और मूल भावना व्यक्ति के हॉलिस्टिक डेवलपमेंट की है। कानूनी शिक्षा के छात्र पहले अपने खुद कल्याण के लिए पढ़ें और उसे फिर सामाज और देश को सौंपे। शिक्षा जीवन का उजास, जीवन का प्रकास है।