लीगल कॅरिकुल विषय पर दो दिन का वर्कशॉप

विधि शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप बदलाव करने पर चर्चा

भोपाल। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय और विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा बुधवार को भोपाल के पीएसएस सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन में एनईपी 2020 : लीगल कॅरिकुल विषय पर दो दिन की वर्कशॉप का शुभारंभ हुआ। इस दौरान विधि शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप बदलाव करने पर चर्चा हुई। भारतीय ज्ञान परंपरा पर फोकस किया गया। वर्कशॉप में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एवं नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमिक के डायरेक्टर अनिरुद्ध बोस, उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार, विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा ने विधि शिक्षा पर अपने मत रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरू प्रो. एसके जैन ने की। कार्यक्रम समन्वय विद्या भारतीय के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. शशि रंजन अकेला और बीयू के लॉ डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. मोना पुरोहित ने किया। इस दौरान रजिस्ट्रार आईके मंसूरी सहित देशभर से आए विधि क्षेत्र के एक्सपर्ट और बड़ी संख्या में शिक्षक और छात्र मौजूद रहे।

जस्टिस बोस ने विधि शिक्षा में मातृ भाषा, आईसीटी पर फोकस करना होगा। उन्होंने कहा कि लॉ स्टूडेंस के लिए चार प्रमुख कॅरियर ऑप्शन हैं। जिनमें एडवोकेट बनते हैं, जज बनते हैं, ऑफिस लॉयर्स जो लॉ फर्म में सेवाएं देते हैं और लॉ टीचिंग। लेकिन अधिकतर संंस्थानों में शिक्षकों की कमी है। साथ ही उन्होंने सामाजिक बदलाव पर प्रकाश डालते हुए कि लोगोें में लाेन लेने की जो आदत है वो आपको अपने स्वामित्व से वंचित कर रही है। विधि शिक्षा में ऐसे क्या चैलेंज हैं जिन्हें हमे सिलेबस में शामिल करना है। स्टूडेंट्स को सोशल सिक्योिरटी की शिक्षा देनी है।

इस दौरान विद्या भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि देश में भारतीय शिक्षा शिशु शिक्षा से लेकर उच्च अध्ययन तक पेराडइम शिफ्ट की ओर जा रही है। जुलाई 2020 में जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित हुई उस पर पांच से छह वर्ष तक काम हुए। एनईपी के आलोक में यूजीसी द्वारा कॅरिकुलम रिवीजन की प्रक्रिया लगातार की जा रही है। उच्च शिक्षा के बहुत सारे विषय हैं। विद्यार्थी ने 22 प्रमुख विषय चुने है, जिनमें विमर्श कर यथायोग्य बदलाव करना तय किया। इस पर विभिन्न कार्यशालाएं हुईं। अभी देशभर में जब भी चर्चा होती है छात्र-शिक्षक,कुलपति आदि सभी यही कहते हैं कि पाठ्य सामग्री को अद्यतन करते रहना चाहिए। उसमें निरंतर बदलाव होते रहना चाहिए। यह प्रक्रिया भी पहली बार हो रही है, ऐसा नहीं है। 1986 के आसपास यूजीसी द्वारा मॉडल करिकुल जारी किया गया। उसमें कहा किया 70-80 प्रतिशत इसको आधार बना सकते हैं। शेष अपनी स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर टॉपिक्स डाल सकते हैं लेकिन अधिकांश विश्वविद्यालयों ने कटपेस्ट ही किया। इसलिए इस पर गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आए विषय भारतीय शिक्षा के लिए जरूरी हैं,भारतीय समाज को उन्नति की ओर ले जाने के लिए जरूरी हैं और भारत के प्रधानमंत्री इन दिनों को उल्लेखित कर रहे हैं भारत जब अपनी स्वतंत्र के 100वर्ष पूरे करे तो भारत दुनिया का सिरमौर देश बनकर खड़ा होगा। भारत अपनी प्राचीन प्रतिष्ठता को फिर प्राप्त करेगा। इसके लिए प्रयास आज की पीढ़ी को करना पड़ेगा। इस पीढ़ी को तैयार करने का प्रयास शिक्षकों के माध्यम से हमारा कैंपस करेगा। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हमारे पास वैसे कॅरिकुलम हो, वैसे सिलेबस हों। इस एनईपी जो विषय हैं उनमें बहुत सारी बाते हैं। इनमें प्रमुख बात हैं कि ज्यादातर संस्थान मल्टीडिसिप्लिनरी होंगे। इससे ही युवक युवती का समग्र विकास हो सकता है। इसके अलावा एनईपी एक और बात प्रमुख है कि हम भारतीय शिक्षा में कैसे भारतीय की ज्ञान परंपरा को कैसे शामिल करें। विधि विषय के अंदर भारत पहली बार ये सीखेगा क्या कि न्यायालय कैसे चलने चाहिए। विधि व्यवस्था कैसी होनी चाहिए। कभी शुक्र की नीति, कभी वृहस्पति की नीति को हमने या बालक-बालिकाओं ने जानने की कोशिश की है। हम सामान्यत: सच बोल देते हैं तो लोग हिकारत की दृष्टि से देखकर बोलते हैं राजा हरीशचंद्र बन रहा है।
उन्होंने कहा कि आज सामान्य व्यक्ति न्यायालय जाता है उसे पता ही नहीं चलता कि जज और वकील के बीच में क्या बहस हो रही है, किस भाषा में बहस हो रही है। जो न्याय मांगने आया उसे कुछ पता ही नहीं चलता। सत्र न्यायालय में तो रीजनल लैंग्वेज आ जाती है। अधिकांश उच्च न्यायालयों में कार्यवाही अंग्रेजी में ही होती है। उसकी शब्दवाली कठिन होती है। जब आदेश आ जाएगा तो वकील बता देगा कि ये आपके खिलाफ आया। व्यक्ति सोचता है कि 10 साल तक केस चला और मैं सुनता रहा और आज पता चला कि आदेश मेरे खिलाफ आया है। मैं तो समझ ही नहीं पाया कि क्या व्यवस्था है। जबकि व्यवस्थाएं आम व्यक्तियों के लिए ही हैं। उनके अनुकूल हम कैसे बदलाव ला सकते हैं, इस पर काम करने की जरूरत है।

उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि कठिन परिश्रम के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तैयार हुई। जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा महत्वपूर्ण विषय है। इसलिए आज हम इस पर गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। जितने विषय हैं उनकी अभी तक पढ़ाई होती रही है लेकिन उनकी दिशा क्या रही है, इसे देखते हैं तो यह पता चलता है कि उसमें भारतीयता का बोध नहीं है। जब हम स्वतंत्र हुए तो स्वतंत्रता के बाद ही बड़े बदलाव होनी चाहिए थे। क्या भारत का शिक्षा के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं था। बहुत लंबे समय कई भ्रांतियां फैलाई गईं। न्याय के क्षेत्र में हर जगह भारतीय दृष्टिकोण को आगे करना था। लेकिन बहुत कम हुआ। जिसके बहुत परिणाम हमने भाेगे हैं। एक समय तो एेसा आया कि लोग अपने देश के बारे में हीन भावना से देखने लगे। इसलिए भारतीय ज्ञान परंपरा पर गंभीरता से बात हो रही है। उन्होंने गणित का उदाहरण देते हुए कहा कि क्या गणित में भारत का योगदान नहीं है। यदि है तो उसे पढ़ाया क्यों नहीं जाना चाहिए? 1 से 9 तक की अंक प्रणाली किसकी देन है। मैने एक व्यक्ति से कहा कि 20 लाख रोमन अंक में खिलकर बताईए पर वो नहीं लिख सके, फिर कहा कि भारतीय अंक में िलखों तो उसने तुरंत लिख दिया। भारतीय समाज में आज भी पेड़-पौधे में पत्ते नहीं तोड़ते, कहते हैं कि ये सो गए हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हमारा देश दुनिया की समस्या का समाधान करने वाला होगा। हम विश्वगुरू होंगे।

कुलगुरु प्रो. एसके जैन ने कहा कि दो दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला से जो भी अमृत निकलेगा उसे यूजीसी, बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजा जाएगा। ताकि भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार विधि के पाठ्यक्रमों जो बदलाव होने चाहिए वो जल्द से जल्द हों। इसे हम मध्यप्रदेश सरकार को भी देंगे जिससे यह यहां के शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया जा सके। अंत में रजिस्ट्रार आईके मंसूरी ने आभार जताया।

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