- राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय पर्यावरण संसद एवं सम्मान समारोह में एक मंच पर जुटे देशभर के 200 पर्यावरणविद्
- भारत के वन पुरुष पद्मश्री जादव पायेंग (असम), पद्मश्री बाबूलाल दाहिया (मध्यप्रदेश), डॉ. श्याम सुंदर पालीवाल (राजस्थान) ने रखे अपने विचार
- देशभर की 110 हस्तियों को पर्यावरण योद्धा सम्मान, 40 नेशनल यूथ आईकॉन अवॉर्ड, पत्रकारों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को दिया गया पर्यावरण सहभागिता सम्मान
20 अक्टूबर 2024, भोपाल.
दुनियाभर में भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण बचाना है तो इसकी शुरुआत आज ही खुद से करें। हमें सस्टेनेबल लाइफस्टाइल के साथ चलते हुए पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना होगा। जल, जंगल, जमीन, नदियों और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए समाज में सभ्य लोगों की परिभाषा को बदलना होगा। हमेशा कोर्ट, पेंट पहनकर अंग्रेजी बोलना ही जेंटलमैन की पहचान नहीं, अब देखा जाए कि उस व्यक्ति ने जीवन में कितने पेड़ लगाए और पर्यावरण को बचाने के लिए क्या प्रयास किए। ये बहुमूल्य विचार राष्ट्रीय पर्यावरण संसद एवं बक्सवाहा सम्मान समारोह में पर्यावरण विशेषज्ञों ने रखे।
पर्यावरण संसद में विशेषज्ञों ने रखे बहुमूल्य विचार
रविवार (20 अक्टूबर) को भोपाल के क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र सभागार में आयोजित समारोह में देशभर के 200 पर्यावरणविद, आईएएस-आईएफएस और गणमान्य हस्तियां एक मंच पर जुटीं। पद्म पुरस्कारों से सम्मानित 3 पर्यावरणविदों- भारत के वन पुरुष पद्मश्री जादव पायेंग (असम), पद्मश्री बाबूलाल दाहिया (मध्यप्रदेश), डॉ. श्याम सुंदर पालीवाल (राजस्थान) की गरिमामयी उपस्थिति में हुई पर्यावरण संसद में विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। मध्यप्रदेश की 4 सामाजिक संस्थाओं की ओर से आयोजित राष्ट्रीय पर्यावरण संसद एवं बक्सवाहा सम्मान समारोह से पहले सुबह 11.30 बजे सभी पर्यावरणविद् यूथ हॉस्टल न्यू मार्केट से पैदल मार्च करते हुए विज्ञान केंद्र पहुंचे।
पर्यावरण संसद के सुझाव केंद्र सरकार को भेजे जाएंगे
झीलों की नगरी में हुए् इस अनूठे समारोह की आयोजन समिति में डॉ. राजीव जैन (न्यू अहिंसा निकेतन शैक्षणिक एवं सामाजिक कल्याण समिति), श्री शरद सिंह कुमरे (राष्ट्रीय पर्यावरण बचाओ अभियान), आनंद पटेल (पर्यावरण शिक्षा एवं संरक्षण समिति) और चौधरी भूपेंद्र सिंह (राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण मंच-NECF) शामिल रहे। आयोजन समिति के प्रमुख सदस्यों ने संयुक्त रूप से बताया कि मध्य भारत में पहली बार हुए खास कार्यक्रम में आए पर्यावरण संरक्षण के सुझावों को भारत सरकार तक पहुंचाया जाएगा।
पर्यावरण संसद में मुख्य अतिथि और वक्ताओं ने क्या कहा?
पद्मश्री बाबूलाल दाहिया (मध्यप्रदेश) ने कहा- ‘’समय के साथ खेती के तरीकों में बदलाव से सफलों में कीटों की संख्या बढ़ती चली गई। बौने किस्म की उन्नत फसलों में कीटों को मारने के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट बाजार में उतार दिए। आज हम मजबूरी में यही कीटनाशक वाला अनाज खा रहे हैं। पर्यावरण के पटरी ध्यान न देने और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से हमारे मित्र कीट जैसे केंचुए खत्म होते चले गए। अब हमें पानी बचना है और इसके लिए पेड़ लगाना है। मालवा में भूजल बहुत नीचे जा चुका है। विंध्य क्षेत्र की सीमेंट फैक्ट्रियों के कारण पानी की कमी आती चली गई। हमारा पारंपरिक अनाज स्वाभाविक रूप से जैविक है। अपनी 40 जिलों की यात्रा के दौरान मैंने देखा कि हमारे आदिवासी पर्यावरण के अनुसार जीवन जी रहे हैं, वे प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जितनी उन्हें जरूरत है।’’
पद्मश्री डॉ. श्याम सुंदर पालीवाल (राजस्थान) ने कहा- ‘’श्याम सुंदर पालीवाल ने कहा कि मैंने पर्यावरण की रक्षा के लिए गांव का सरपंच बनने का निर्णय लिया। गांव में 35 साल से एक ही परिवार से सरपंच था। मैंने गांव की महिलाओं से वादा किया था कि मैं आपको नल से पानी पिलाऊंगा, झूले में बैठाऊंग, सरकार की विभिन्न योजनाओं को गांव में लागू करने की प्रतिज्ञा ली थी। गांव में अमीर गरीब और स्वर्ण दलित का भेदभाव को खत्म किया। रात में पंचायत आपके द्वार अभियान चलाकर लोगों फायदा दिलाया। मेरी बेटी की मौत के बाद उसे अमर करने का संकल्प लिया। ये तय किया कि गांव में जब भी कोई बेटी पैदा होगी तो 101 पेड़ लगाएंगे। आज हमारे आदर्श गांव में और पूरे इलाके में हरियाली है। राजस्थान सरकार ने हमारे गांव में ट्रेनिंग सेंटर बनाया। आज राजस्थान की 260 ग्राम पंचायतें इसी मॉडल पर कार्य कर रही हैं। गांवों में आबादी कम होना चिंताजनक है। ऐसा लगता है कि आगे गांव बचाओ अभियान चलाना पड़ेगा। कभी कल्पना नहीं की थी कि मुझे पद्मश्री मिलेगा, केबीसी में स्थान मिलेगा और हमारे गांव के प्रयास पर फिल्में बनेंगी।’’
भारत के वन पुरुष पद्मश्री जादव पायेंग (असम) ने कहा- ‘’हमने पेड़ लगाने की शुरुआत की तो धीरे धीरे इलाके में टाइगर, गैंडा समेत वन्यजीवों की कई प्रजातियां रहती हैं। वनों को लेकर कार्य को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सराहा था। भारतीय एजुकेशन सिस्टम में सुधार लाने की जरूरत है। सरकार ऐसा सिस्टम तैयार करे जो पर्यावरण से लिंक हो और उसे बढ़ावा देता हो।’’
श्री सुरेश जैन (IAS) ने कहा- ‘’अगर पर्यावरण को संरक्षित किया जाए तो लोग गांवों की ओर लौटने लगेंगे। कुआं मेरे खेत ही क्यों तेरे खेत में हो, लेकिन खोदें तो पानी निकलना चाहिए।’’
श्री अभिलाष खांडेकर (वरिष्ठ पत्रकार, लेखक) ने कहा- ‘’आज हमें जल संरक्षण को लेकर कार्य करने की जरूरत है। हम घर में भी पानी बचाने की कोशिश करें। ग्लास में भी पीने का पानी उतना ही लें, जितना पी पाएं। आज स्मार्ट सिटी के साथ हमें स्मार्ट विलेज बनाने की आवश्यकता है। भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए कार्य करने की जरूरत है।’’
श्री अरुण गुर्टू (IPS) पूर्व डीजीपी ने कहा- ‘’आज हमें जल, वायु के साथ ध्वनि प्रदूषण को लेकर भी सोचने की जरूरत है। पिछले दिनों एक समाचार भोपाल में हमने देखा कि डीजे के तेज शोर में नाचते एक बच्चे की मौत हो गई। ज्यादा जोश हमारे दिल की धड़कनों को प्रभावित कर सकता है। एनजीटी जैसी कई संस्थाएं बन गई हैं। बड़े अच्छे निर्णय हो रहे हैं, लेकिन संस्थाएं सरकार के पक्ष में ही बोलती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, इस बारे में सोचने की जरूरत है। आज ट्रिब्यूनल कोर्ट की तरह कार्य कर रहे हैं।’’
डॉ. आर के पालीवाल (IRS) ने कहा- ‘’देश की संसद से लेकर गांव तक पर्यावरण की चर्चा होनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज के बाद अब हमें शुद्ध हवा की बात करना चाहिए। अब हमें सभ्य व्यक्ति की परिभाषा बदलने की जरूरत है। देखा जाए कि व्यक्ति ने जीवन में कितने पेड़ लगाए। पर्यावरण बचाने के लिए क्या किया। मैं कागज इस्तेमाल नहीं करता हूं, क्योंकि हर कागज के लिए कोई पेड़ काटा जा रहा है। हमें खुद अपने अंदर बदलाव लाने की जरूरत है। बाजार से जैविक रूप से तैयार चीजों को खरीदने का संकल्प लेना पड़ेगा।’’
डॉ. विपिन व्यास (पर्यावरणविद् एवं डीन लाइफ साइंस डिपार्टमेंट, बीयू) ने कहा- ‘’परीक्षाओं में बच्चों से पर्यावरण पर निबंध लिखवाया जाता है, इस निबंध की पहली में प्रदूषण के लिए फैक्ट्रियों को जिम्मेदार बताया जाता है, लेकिन सोचिए इनमें बनने वाला सामान कौन उपयोग कर रहा है। हम सब भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। आज हम सभागार से सस्टेनेबल लाइफस्टाइल का संकल्प लेकर निकलें। हमें उपयोग से पहले सोचना चाहिए कि जो वस्तु हम उपयोग कर रहे है, वो डस्टबिन के बाद कहां जाएगी और उससे पर्यावरण को कितना नुकसान होगा।’’
इस दौरान अतिथि एवं प्रमुख वक्ताओं के रूप में श्री आजाद सिंह डवास (रिटा. IFS), डॉ. सुभाष सी. पांडेय (वरिष्ठ पर्यावरणविद्), डॉ. धर्मेंद्र कुमार (संस्थापक- पीपल नीम तुलसी अभियान पटना) अपने बहुमूल्य विचार रखे।
वक्सवाहा आंदोलन में योगदान देने वालों को विशेष सम्मान
- आयोजन समिति के सदस्यों में शामिल डॉ. राजीव जैन ने बताया कि समारोह में उन 200 हस्तियों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने वक्सवाहा आंदोलन में योगदान दिया और वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण और इसके प्रति जागरुकता के क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसके लिए 5 लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड- रमेश बंजारी (पर्यावरणविद् भोपा), रमेश चंद्र गोयल (जल स्टार सिरसा हरियाणा), डॉ. धर्मेंद्र कुमार (संस्थापक- पीपल नीम तुलसी अभियान), डॉ. प्रोफेसर सदाचारी सिंह तोमर (पूर्व सहायक निदेशक एवं प्रमुख वैज्ञानिक), शैफुद्दीन शाजापुरवाला (भोपाल) को दिए गए।
- इसके साथ ही देशभर की 110 हस्तियों को पर्यावरण योद्धा सम्मान, 40 हस्तियों को नेशनल यूथ आईकॉन अवॉर्ड और मध्य प्रदेश समेत देशभर के पत्रकारों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को पर्यावरण सहभागिता सम्मान दिया गया। राष्ट्रीय पर्यावरण संसद एवं सम्मान समारोह में दलित इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI) और सर्च एंड रिसर्च सोसायटी, राष्ट्रीय सैनिक संस्था (एमपी यूनिट), पराक्रम जनसेवी संस्थान समेत अन्य संस्थाओं का भी विशेष सहयोग मिला।