भोपाल गैस त्रासदी की 39वीं बरसी के पूर्व गैस पीड़ितों के हितों में काम करने वाले पांच संगठनों के सैकड़ों सदस्यों ने आज गैस त्रासदी में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और न्याय की मांग को लेकर यहां मशालें लेकर मार्च निकाला।
मशाल जुलूस परित्यक्त कीटनाशक कारखाने के सामने जे पी नगर में बने स्मारक माता की प्रतिमा के नीचे समाप्त हुआ। संगठनों के नेताओं ने ‘मौतों के लिए मातम, जीवितों के लिए संघर्ष’ के नारों के बीच अपनी मांगें प्रस्तुत कीं।
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि यूनियन कार्बाइड और डॉव केमिकल ने गैस पीड़ितो के बच्चों में जन्मजात विकृतियां और स्वास्थ्य को पहुंची क्षति के लिए अभी तक मुआवजा नहीं दिया है। इसके अलावा जो प्रदूषण करे वही हर्जाना भरे का सिद्धांत भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों में मान्य है। अमरीकी कंपनियों को कारखाने से पांच किलोमीटर तक मिट्टी और भूजल के पर्यावरण प्रदूषण के लिए भुगतान करना होगा।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि समझौते पर उच्चतम न्यायालय का 1991 का आदेश इस पर बहुत स्पष्ट है। केंद्र सरकार गैस पीड़ितों के मुआवजे की कमी का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध है। सुधार याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) की कार्यवाही के दौरान अटॉर्नी जनरल ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि यूनियन कार्बाइड द्वारा दिया गया मुआवजा वास्तव में अपर्याप्त है। अब भोपाल के गैस पीड़ितों को उम्मीद है कि केंद्र सरकार उन्हें पर्याप्त मुआवजा देगी।
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा कि हमारे पास सबूत हैं कि गैस अथॉरिटी इंडिया लिमिटेड (गेल), ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, गुजरात अल्कलीज़ क्लोराइड्स लिमिटेड और अन्य ने यूनियन कार्बाइड के फरार होने के दौरान उसके साथ व्यापार करना जारी रखा। इन पीएसयू के प्रतिनिधियों को एक हत्यारी कम्पनी की सहायता करने के लिए दंडित किया जाना चाहिए।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने भोपाल में भोपाल पर एक अधिकृत आयोग की स्थापना का आह्वान किया, जिसके पास गैस पीड़ितों और उनकी अगली पीढ़ी की दीर्घकालिक चिकित्सा देखभाल, आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए अधिकार और कॉर्पस फंड हो। इस तरह के एक आयोग को वास्तव में 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था और यह हादसे के दीर्घकालिक परिणामों से निपटने का सबसे अच्छा साधन है।
दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का ऐसा रिसाव हुआ था। इसके चलते हजारों लोग नींद में ही मौत के आगोश में समा गए थे तथा आज भी हजारों लोग इस जहरीली गैस का दंश झेल रहे हैं।