बीमा कंपनियों में सुधार के उपाय सुझाने का काम दागी कंपनी को मिला : संगठन

सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के कर्मचारी संगठनों ने आरोप लगाया है कि साधारण बीमा कंपनियों में दक्षता एवं विकास की गतिविधियां बढ़ाने तथा उनके पुनर्गठन के उपाय सुझाने का जिम्मा जिस कंपनी को मिला है वह धोखाधड़ी तथा गबन में शामिल रही है और इसके लिए उस पर 10 करोड़ डॉलर का जुर्माना भी लगा है।

कर्मचारी संगठनों चिंता जताई है कि बीमा कम्पनियों में सुधार के लिए जिप्सा प्रबंधन ने जिस अर्न्स्ट एंड यंग- ई एंड वाई फर्म को सलाहकार चुना है वह सीपीए परीक्षा में धोखाधड़ी की आरोपी है और उस पर इसके लिए 10 करोड़ डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था। इस सम्बन्ध मे पिछले साल द गार्जियन, यूएसए टुडे जैसे कई समाचार पत्रों में खबरें छपी भी थीं। इकोनॉमिक टाइम्स ने गत चार अप्रैल को कहा है कि जर्मन ऑडिट वॉचडॉग ने वायरकार्ड घोटाले के कारण ई एंड वाई पर दो साल के लिए सार्वजनिक हित की कंपनियों के ऑडिट करने पर प्रतिबंध लगाते हुए कंपनी पर पांच लाख यूरो का भी जुर्माना लगाया था।

बीमा कंपनियों के संगठन जनरल इंश्योरेंस इम्पलाइज आल इंडिया एसोसिएशन के महासचिव तथा कर्मचारी संगठनों के अखिल भारतीय फेडरेशन में उत्तरी क्षेत्र के संयोजक त्रिलोक सिंह ने कहा है कि यह गंभीर विषय है कि डीएफएस के कुछ अधिकारियों के दबाव में बीमा कंपनियों का प्रबंधन ई एंड वाई की रिपोर्ट को आंख मूंदकर लागू कर पुनर्गठन के नाम पर कार्यालयों को बंद या विलय कर कर्मचारियों का बेवजह स्थानांतरित कर रहा है।

उन्होंने कहा कि बीमा कंपनियों के कर्मचारी, अधिकारी, एजेंट, सर्वेक्षक और इन कंपनियों से जुड़े अन्य पेशेवर ई एंड वाई की रिपोर्ट का सिद्धांत रूप में विरोध कर रहे हैं।

श्री सिंह ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि प्रबंधन ने कर्मचारियों, अधिकारियों और हितधारकों के साथ रिपोर्ट को साझा किए बिना एकतरफा तरीके से रिपोर्ट की सिफारिशों पर काम करना शुरु किया है।

उन्होंने कहा कि मुख्य श्रम आयोग ने इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करते हुए जिप्सा प्रबंधन, डीएफएस तथा सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के प्रबंधन को यूनियनों, एसोसिएशन और कल्याण संघों के साथ द्विपक्षीय चर्चा करने का दो बार निर्देश दिया लेकिन इन निर्देशों को नज़रंदाज़ कर मनमानी की जा रही है।

कर्मचारी संगठनों के नेताओं ने कहा कि 1,25,000 करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाली साधारण बीमा कंपनियां गंभीर खतरे में हैं। ट्रेड यूनियनों और संघों के संयुक्त मंच ने 25 से अधिक संसद सदस्यों को इस बारे में ज्ञापन भी सौंपा है और सदस्यों ने वित्तमंत्री, वरिष्ठ अधिकारियों से इस बारे में बात भी की है लेकिन मनमानी पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि मुख्य श्रम आयुक्त के हस्तक्षेप पर, ट्रेड यूनियनों और संघों के संयुक्त मंच ने चार जनवरी और 29 मार्च को अपनी हड़ताल स्थगित कर दी थी लेकिन सार्वजनिक साधारण बीमा कंपनियों का प्रबंधन और डीएफएस अधिकारियों ने इस पर गंभीरता से संज्ञान नहीं लिया है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में कर्मचारी अनवरत आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

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